किसकी सरकार भाई , कैसी सरकार
हम तो गए हार भाई, हम तो गए हार
दिल्ली की गद्दी पर बैठा महाराजा
जनता को समझ लिया उसने बैंडबाजा
सूख गई फसल मेरे खेतिहर बीमार
हम तो बेकार भाई , हम तो बेकार।
दिन में भी सोई है हमरी रजधानी
एक तरफ राजा , एक तरफ रानी
लीला अपार भाई, लीला अपार
दोनों कलाकार भाई ,दोनों कलाकार।
एक तरफ साइकिल ,हसिया औ हाथ
हाथी पर चढ़कर ललटेन चले साथ
कीचड़ में कमल देखो करे चीत्कार
तीर करे वार भाई, तीर करे वार।
जंगल और खेत में लगे कारखाने
सूख रहीं नदियां , लगे कांटे हरियाने
धुआं-धुआं जंगल में गरजे ‘भरमार’
हुए बेरोजगार भाई,अंधा बाजार ।
हल्ला-हंगामा और दंगे का शोर
बहुरुपिए नाच रहे देखो हर ओर
हाथों में परचम ले हरवे-हथियार
माया बाजार भाई, माया बाजार।
दिल्ली तो जगमग है, बाहर अंधेरा
सीमा पर दुश्मन और घर में लुटेरा
राजा और रानी का यही कारोबार
कर लो बिचार भाई ,कर लो बिचार।
मेहनत – मजूरी के गए दिन बीत
घपले-घोटाले के बजते हैं गीत
अपना तिरंगा तो हुआ तार-तार
सभी गुनहगार भाई, सभी गुनहगार।